Saturday, February 9, 2013

हिन्दू सनातन धर्म खतरे में

                कारण
1. वोट बैंक की राजनीति
2. हिंदू संस्थाओं की भारत के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा विनाश
3. हिन्दू के उदासीनता और अनभिज्ञता
4. बड़े पैमाने पर मत परिवर्तन
5. लव जिहाद एक साजिश
6. मीडिया पर कब्जा
7. इस्लामी आतंकवाद

1. वोट बैंक की राजनीति :- वोट बैंक की राजनीति में परिणाम होगा पूरी तरह हिंदुओं के हाशिए पर।
भारत में सत्ता पाने के लिए आवश्यक है 40%  वोट बैंक की (25% मुसलमान + 15% ईसाई वोट) और हिंदू वोट को विभाजित करके धर्मनिरपेक्ष पार्टी  सत्ता प्राप्त करते हैं। यूपीए और अन्य दूसरे धर्मनिरपेक्ष पार्टी ड्रामा मुस्लिम वोट हड़पने के लिए सभी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए विशेष आरक्षण, दूसरे समुदायों के बीच गरीबों संबंध में कोई ध्यान नहीं, आतंकवादी अफजल को फांसी नाटक, हिंदुओं पर मुसलमानों की बढ़ती हिंसा नया साहस के साथ शुरू हो गया है, चुनावों में कांग्रेस नेतृत्व(यूपीए सरकार) जीत की रणनीति के तहत मुसलमानों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। यूपीए और अन्य दूसरे धर्मनिरपेक्ष पार्टी आरक्षण, आदि के माध्यम से आगड़े और पिछड़े, दलित, आदिवासी जातियों में हिंदुओं विभाजित करके पिछड़े, दलित, आदिवासी जाति के हिंदू वोट पर कब्जा करते हैं। समान नागरिक संहिता बस मुस्लिम कट्टरवाद के कारण से  फ़ैसला न किया गया  हैं। गुमराह हिंदू राजनीतिक नेताओं (कांग्रेस,कम्युनिस्टों, द्रमुक आदि),  को लगता है कि वे मुस्लिम और ईसाई बहुमत के बाद भी निर्वाचित करने का मौका प्राप्त करते रहेगे। साम्प्रदायिक और लक्षित हिंसा अधिनियम,२०११- २१वीं शताब्दी का काला कानून है इसका लक्ष्य अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को मजबूत करने के अलावा हिन्दू संगठनों और हिंदू नेताओं का दमन करना है।
समाधान :- हर हिंदू हिंदू समर्थक पार्टी के लिए वोट देना चाहिए, हिंदू वोटों का ध्रवीकरण,हिंदूओं को जरूरत है संगठित वोटिंग सीखने की।


2. हिंदू संस्थाओं की भारत के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार द्वारा विनाश :- हिंदू संगठनों और उनके नेताओं को  कुचलना।
सरकार द्वारा अल्पसंख्यक संस्थानों को सहायता करना, सरकार द्वारा धर्म-परिवर्त रोकने उपाय नहीं और यहां तक कि उन्हें दूसरों को धर्मान्तरित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। धर्मान्तरित द्वारा भी हिंदू संस्थाओं नष्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।अल्पसंख्यकों को पहले से ही तुष्टीकरण और अनावश्यक छूटें दी गई हैं। सरकार की रुचि भ्रष्टाचार को समाप्त करने की जगह भ्रष्टाचार को संरक्षण देकर उसके विरुद्ध आवाज उठाने वालों के दमन में है, उसी प्रकार यह सरकार साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने की जगह हिंसा करने वालों को संरक्षण और उनके विरुद्ध आवाज उठाने वाले हिंदू संगठनों और उनके नेताओं को इसके माध्यम से कुचलना चाहती है। षडयंत्र के आधार पर हिन्दू समाज, हिन्दू संगठनों और हिन्दू नेताओं को शिकंजे में कसने का प्रयास किया जा रहा है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में कथित अल्पसंख्यक समाज के द्वारा हिन्दू समाज पर अधिक हमले करते हैं।
समाधान :- सभी हिंदू संस्था एकजुट होकर लड़ना चाहिए। 

3. हिन्दू के उदासीनता  और अनभिज्ञता :- धर्म के सम्बन्ध में उदासीनता है!
एक भारतीय हिंदू खुद के बारे में अधिक चिंतित हैं, और अपने परिवार, अपने बच्चों को शिक्षित करने, अपने जीवन को बेहतर बनाने,  वह अत्यधिक है व्यक्तिपरक।  यही कारण है कि हिंदू अपनी राजनीतिक शक्ति को कम कर देता है। हिंदू या तो पर कुछ प्रतिक्रिया या बिल्कुल भी प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।  हिन्दू को तुष्टीकरण की राजनीति को समझना पड़ेगा। हिन्दुओं समूह में सोचना चाहिए।
समाधान :-  हिन्दू को अपने धर्म, इतिहास और संस्कृति का ज्ञान रखना चाहिए और साहस के साथ हिन्दू को अपने धर्म की रक्षा करना चाहिए।

4. बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन :- हिन्दू धर्म महानता की समझ नहीं।
हिंदू आध्यात्मिक नेताओं के (कुछ को छोड़कर) दृष्टि का एक पूर्ण अभाव है। हिंदू आध्यात्मिक नेताओं जाति व्यवस्था के खिलाफ बात नहीं करते है। हिंदू आध्यात्मिक नेताओं दलितों की मंदिरों में उनके प्रवेश नहीं देने के विरुद्ध के बारे में बात नहीं करते है। हिंदू आध्यात्मिक नेताओं परिलक्षित रवैया उच्च जाति हिंदुओं की है।हिंदू आध्यात्मिक नेता सभी को बराबर आंखों से देखने के लिए कृपया करें। बड़े पैमाने पर लोगों खासकर गरीब आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करने के लिए अंतरराष्ट्रीय साजिश की जा रही है।
समाधान :- धर्म प्रचार और हिन्दू धर्म में वापस आने के लिए प्रोत्साहित करने में लगे।

5. लव जिहाद एक साजिश :- लव जिहाद का मूल उद्देश्य है हिन्दू लड़की को अपने नकली प्यार मे फंसा कर धर्मांतरित करना
इसका मुख्य उद्देश्य ये है कि हिन्दू संस्कृति को कैसे ख़तम किया जाए 'लव जिहाद' के रास्ते केरल के
इस्लामीकरण की साजिश, करीब एक माह पहले, प्रमुख मलयालम साप्ताहिक 'कलाकौमुदी' ने ' लव जिहाद', मतांतरण और केरल में तेजी से बढ़ती फर्जी मुद्रा के दुष्प्रभावों पर एक खास रपट छापी थी।हिन्दू युवतियों को बरगलाकर मुस्लिम युवक अपने प्रेम जाल में फंसाते हैं और जबरन निकाह कर धर्मांतरण कर रहे हैं।  हिन्दू समाज को यह बताना होगा कि 'लव जिहाद' के कारण प्रतिदिन सैकड़ों हिन्दू लड़कियां जबरन मुस्लिम बनाई जा रही हैं।  उन लड़कियों झांसा देकर निकाह किया जाता है, फिर कुछ समय बाद तलाक दे दिया जाता है। यह सब षड्यंत्र है। सेकुलरवाद यानी मुस्लिम तुष्टीकरण, तुष्टीकरण की नीतियों ने ही पूरे देश में कट्टवादियों का मनोबल बढ़ाया है। कोई मुस्लिम युवक काफी समय तक किसी हिन्दू लड़की के पीछे पड़ता है और छल-कपट से एक दिन उससे निकाह कर लेता है। कोई भी उसका प्रबल विरोध नहीं करता है। भोली और मासूम हिन्दू लड़कियों को प्रेम-जाल में फंसाया जाता है। उनका भावनात्मक शोषण किया जाता है। यह षड्यंत्र देश के अनेक हिस्सों में जारी है। मुस्लिम शासकों ने बलपूर्वक मतान्तरण कराया। अब यह समुदाय छल का सहारा ले रहा है। यह हिन्दू समाज के लिए चिन्ता का विषय है।
समाधान :- लव जिहाद पर चिंता जताते हिन्दू अभिभावकों से आग्रह किया कि वह अपनी बच्चियों को समाज में फैल रहे इस गंभीर समस्या के प्रति जागरुक करें।  सनातन-धर्मियों के लिए एक चेतावनी है। 'लव जिहाद' की गहराई में जाने का समय आ गया है।

6. मीडिया पर कब्जा :- छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों सभी मीडिया पदों भर गया है।
मीडिया का उपयोग हिंदू पर हमले करने और दबाने के लिए झूठे प्रचार करने एक प्रचार सेट के  तैर पर किया जाता है। हिंदू संतों को गिरफ्तार और मीडिया द्वारा परीक्षण, हिंदू को दबाने के लिए छद्म धर्मनिरपेक्ष मीडिया जो कुछ भी सोचता है कि हिंदू विरोधी कुछ अधिक अंक(टीआपी) के लायक है। इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ मीडिया  कुछ चर्चा भी नहीं  करते है। संविधान का चौथा स्तंभ मीडिया बिकने की कगार पर खडा है,
गलोबलाइजेशन के युग में सब कुछ बदल गया है।सरकार द्वारा मीडिया पर कब्जा करने की जुगत लगाई जा रही है। व्यवसायिक घरानों के बाद अब मीडिया घरानों की पत्रकारों को लुभाने के लिए सरकार द्वारा हर संभव कोशिश आरंभ हो गई है।
समाधान :-  अन्य समाचार स्रोतों (इंटरनेट) के साथ अपडेट रहे।

7. इस्लामी आतंकवाद :- 'भारत को घरेलू और विदेशी इस्लामी आतंकवाद से खतरा'
अधिकांश मुसलमान आतंकवादी नहीं हैं, लेकिन ज्यादातर  आतंकवादी मुसलमान हैं। इस्लामी आतंकवाद मज़हबी आतंकवाद का एक रूप है, मुसलमानों द्वारा अलग राजनीतिक और मज़हबी उद्देश्य  को प्राप्त करने के लिए जेहाद करते हैं। इस्लामी आतंकवाद का शिकार बनता हैं हिंदू, सिख, ईसाई,बौद्ध,यहूदी आदि। पुलिस इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की अधिकार भी नहीं दिया गया है, जिहाद पर मीडिया मे चर्चा भी नहीं, सेकुलरिज्म के नाम पर इस्लामी कट्टरवाद को बढावा दिया जाना, देश के बहुसंख्यक हिन्दुओं की बात उठाने वाले को आतंकवादियों के बराबर खडा किये जाने के प्रयासों को महिमामण्डित किया जाना, मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादियों की पैरोकारी, आतंकवाद के आरोप में पकडे गये लोगों के मामले में सेकुलरिज्म के सिद्धांत का पालन। इन परिस्थितियों में कौन सा देश आतंकवाद से लड सकता है, इस के लिए भारत सरकार जिम्मेदार है।
समाधान :- देश में स्थित उन तत्वों पर पैनी नजर रखी जाए जो इस्लामी आतंकवाद के मार्ग तक के ले जाने में सहयोग करते हैं। इस्लामी आतंकवाद का अंत(समाप्त) िकया जाय।

ध्यान दें :- हिन्दू का प्राचीन नाम आर्य और भारत देश(इंडिया) का प्राचीन नाम  आर्यावर्त है।

Islamic Love Jihad in India Exposed  
भारत में इस्लामी लव जिहाद  उजागर







मनु इतिहास पुरुष और प्राचीन संस्था


मनु प्राचीन भारतीय इतिहास के निराले महानायक हैं, वे ऋग्वेद में हैं, अथर्ववेद में हैं, ब्राह्मणों, आरण्यकों में हैं, पुराणों में हैं, रामायण में हैं, महाभारत में हैं। वे जर्मनी में अध्ययन का विषय बने, वे विश्व के प्रथम विधि निर्माता कहे जाते हैं। चम्पा के एक अभिलेख में बहुत से मनु श्लोक मिलते हैं। बर्मा का धम्मथट् मनु आधारित है। बालीद्वीप का कानून मनु आधारित था। भारतीय राजनीति का एक समूह उन्हें जाति व्यवस्था का जन्मदाता बताता है, गाली बकता है, समाज के एक हिस्से को "मनुवादी" कहता है। उनकी तरफ से कोई प्रतिवाद नहीं करता। वस्तुत: भारतीय संस्कृति के विकास में मनु की एक खास भूमिका है लेकिन पहले कुछ सवाल उठाते हैं मसलन मनु कब हुए? क्या वे हमारी आपकी तरह एक प्राणी थे? मनु कौन थे? क्या वे वर्ण/जाति व्यवस्था के जन्मदाता थे? वगैरह-वगैरह। वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था नहीं थी। मनु ऋग्वेद के दिलचस्प पात्र हैं। ऋषि अपने समकालीन ऋषियों की तुलना में मनु को और भी प्राचीन बताते हैं। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल (सूक्त 80 मंत्र 16) में ऋषि इन्द्र की स्तुति करते हुए कहते हैं "पिता मनु, ऋषि अथर्वा और दध्यंग ने पहले भी इन्द्रदेव की स्तुतियां गाई थीं।" मनु ऋग्वैदिक ऋषियों के पिता हैं।
ऋग्वेद में कृषि तंत्र की चर्चा है। ऋषियों के अनुसार अश्विनी देव हल चलाते हैं। ऋषि बताते हैं "अश्विनी देवों ने मनु की समृद्धि के लिए सर्वप्रथम हल चलाया। (8.22.6) यहां मनु मनुष्यता के पर्यायवाची हैं। भारत के देवता अवकाशभोगी या आराम तलब नहीं थे। मनुष्य के सत्कर्म यज्ञ हैं। अग्नि में मंत्रोच्चार सहित समिधा डालना भी यज्ञ है। एेंजिल ने अग्नि की खोज को सभ्यता विकास का बड़ा काम बताया है। यज्ञ के लिए अग्नि खोजने का काम भी मनु ने किया। (7.2.3) अग्नि स्तुति में इससे भी बड़ी बात कही गयी "हे प्रकाशरूपा अग्नि, मनु ने लोक कल्याण हितार्थ सदा के लिए आपकी स्थापना की।" (1.36.19) मनु ने ही अग्नि की खोज की थी। मनु ने ही दिव्य औषधियों की भी खोज की। (2.33.13) तैतिरीय संहिता में मनु के कथनों को दिव्य औषधि बताया गया। "ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार मनु ने अपनी सम्पत्ति पुत्रों में बांटी। "निरुक्त" (800-500 ई.पू.) में भी मनु कथनों का उल्लेख है। गौतम, वशिष्ठ और आपस्तम्ब ने मनु का उल्लेख किया है। सत्यकेतु विद्यालंकार ने "प्राचीन भारतीय इतिहास का वैदिक युग" (पृष्ठ 148) में बताया "पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार पहला आर्य राजा वैवस्वत मनु था। इसके पहले अराजक दशा थी।" मनु के सबसे बड़े पुत्र का नाम इक्ष्वाकु था वह मध्य देश का राजा बना, राजधानी अयोध्या थी। इसी वंश में आगे दिलीप, रघु, दशरथ और राम हुए।"
डा. रामबिलास शर्मा ने "पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद" (पृष्ठ 230) में याद दिलाया है "यूनानी परम्परा के अनुसार क्रीट में क्रोसोस नगर के प्रथम राजा "मिनोस" थे। उन्हीं के नाम पर क्रीट की प्राचीन सभ्यता को "मिनोअन सभ्यता" कहा जाता है।" इसी तरह मिस्र के प्रथम राजा मेनेस थे। क्रीट में मिनोस। भारत में मनु। डा. शर्मा कहते हैं "इन नामों में ध्वनित समानता आकस्मिक नहीं है। तीनों देशों में मनु, मेनेस, मिनोस सभ्यता के आदि प्रतिष्ठाता है। भारत रत्न डॉ0 पांडुरंग वामनकांणे ने "धर्म शास्त्र का इतिहास (खण्ड 1 पृष्ठ 42) में बताया "भारत वर्ष में मनुस्मृति का प्रथम मुद्रण सन् 1813 ई0 में हुआ। इसका व्याकरण पाणिनि सम्मत है।" जाहिर है कि यह ग्रंथ पाणिनी के बहुत बाद का है, "मनुस्मृति की प्राचीनतम टीका मेधा तिथि (900 ई0) की है। वेदांत सूत्र के भाष्य में शंकराचार्य ने (भी) मनु को उद्धृत किया है। कुमारिल के "तंत्रवार्तिक" में मनुस्मृति को सभी स्मृतियों में प्राचीनतम बताया गया है। प्राचीन संस्कृत नाटक मृच्छकटिक में भी मनु का उल्लेख है। वलभीराज धारसेन के अभिलेख के अनुसार 570 ई0 में मनुस्मृति थी।"
ऋग्वेद में जलप्रलय की कथा नहीं है लेकिन अथर्ववेद में इसके संकेत हैं। ऋग्वेद में सरस्वती जल से भरी पूरी हैं। अथर्ववेद में वे सूखी नदी हैं। जल प्रलय ऋग्वेद के बाद लेकिन अथर्व. के पहले की घटना है। अथर्ववेद के विराट सूक्त (8.13.10) में विवस्वान पुत्र मनु को विराट का पुत्ररूप बताया गया। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार एक दिन प्रात: मनु हाथ धो रहे थे, उनके हाथ में मछली आ गयी। उसने कहा आप मुझे संरक्षण दें, मैं आपको संरक्षण दूंगी। मनु ने पूछा "सो कैसे?" उसने कहा मैं छोटी हूं, मुझे घड़े में#ं पालो, बड़ी होने पर समुद्र में डाल देना। भविष्य में प्रलय आएगी, तुम नाव बनाना। वैसा ही हुआ। तूफान आने पर वे नाव में बैठे। मछली अब बड़ा मत्स्य थी, उसने सींग से नाव खींची। वे उत्तरी पहाड़ पर गये, उतरे। प्रलय में सब कुछ नष्ट हो गया। मनु बच गये। महाभारत वन पर्व में मार्कण्डेय ने युधिष्ठिर को मनु की कथा सुनाई "मनु नदी तट पर थे। यहां भी छोटी मछली से लेकर आगे की कथा ज्यों की त्यों है। थोड़ा सा फर्क है। मछली ने कहा कि नाव में सप्त ऋषियों को बैठाओ, सृष्टि में पाए जाने वाले सारे बीज रखो। द्युलोक आकाश लोक जलमय था। मत्स्य सींग से नाव को खींच कर हिमालय की चोटी तक ले गया। (संक्षिप्त महाभारत, खण्ड 1 गीता प्रेस, पृष्ठ 300)
महाभारत के शांतिपर्व में मनु और बृहस्पति की बातचीत है। महाभारत के अनुसार महर्षि बृहस्पति ने मनु से पूछा, "जो इस जगत का कारण (तत्वज्ञान) और वैदिक कर्मो का अधिष्ठान है, मंत्रों द्वारा जिस का ज्ञान नहीं हो, वही तत्व बताइए।" मनु ने बृहस्पति से कहा, "प्रिय विषय सुख है, अप्रिय दुख है। इष्ट की प्राप्ति और अनिष्ट के निवारण के लिए कर्म है।" यहां कर्म पर जोर है। आगे कहते हैं "मन और कर्म से संसार की सृष्टि हुई है। फलइच्छा के त्याग से अक्षय की प्राप्ति होती है।" फिर सृष्टि रचना के बारे में कहते हैं#ै "अक्षर से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी और पृथ्वी से पार्थिव जगत की उत्पत्ति हुई है।" मनु काल्पनिक नहीं हैं। वे भारत के जन-जन की स्मृति में सुरक्षित आदि मानव भी हैं। मनुष्य मनु स्य हैं। यानी मनुष्य "मनु के" हैं। संस्कृत में स्य प्रत्यय का अर्थ का, की, के होता है। इसी तरह मनुज का मतलब है मनु की संतान। मनु को जाति व्यवस्था का संस्थापक कहा जाता है और जाति व्यवस्था को मनुवाद, लेकिन डा. बी.आर. अम्बेडकर ने अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में "भारत में जातियां" शीर्षक पर्चा (9 मई 1916) पढ़ा। उन्होंने कहा, "मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं कि जाति-धर्म का नियम मनु प्रदत्त नहीं है। जाति मनु के पहले से ही थी।" डा. अम्बेडकर सम्भवत: मनुस्मृति के कथित रचनाकार/मनु का उल्लेख कर रहे थे। बेशक जातियां मनुस्मृति के पहले भी थीं लेकिन ऋग्वैदिक काल में जाति वर्ण का नाम निशान भी नहीं था। डा. अम्बेडकर ने भी "दि अनटचेबुल्स" में लिखा है कि वैदिक काल में जातियां नहीं थीं। माक्र्सवादी चिंतक डा. रामबिलास शर्मा ने "इतिहास दर्शन" (पृष्ठ 25) में बताया है कि "ऋग्वेद में मनु के नाम और कार्यो का उल्लेख बार-बार हुआ है परन्तु जलप्रलय का उल्लेख या उसकी ओर संकेत एक बार भी नहीं हुआ। यह तथ्य ऋग्वेद के मनु को पुराण कथाओं के मनु से अलग करता है।" यानी मनु भारत, भारतीय इतिहास, पुराण और संस्कृति में एक अविच्छिन्न परम्परा के वाहक हैं। वे एक आदरणीय संस्था भी थे।
लेखक
ह्मदयनारायण दीक्षित