Tuesday, January 30, 2018

हिन्दू एकता को तोड़ता जातिवाद।

जातिवाद हिन्दूओं में एक आम बिमारी हैं जहां जात की बात जाती है वहां सबकुछ गौण हो जाता है मतलब है कि हिन्दू एकता, राष्ट्रवाद, सामूहिकता, सहयोग आदि सब कुछ गौण हो जाता है। आये दिन आप समाचारपत्रों में पढ़ते होगें की मुसलमानों ने हिन्दूओं के धार्मिक यात्रा के दौरान हमला कर दिया इससे इतने हिन्दू मारे या घायल हो गए मुसलमानों ने बिना किसी कारण से हिन्दूओं मन्दिरों और घरों को निशाना बनाया आदि आदि। हिन्दूओं को रोज मारा जा रहा है और अपमानित किया जा रहा है फिर भी हिन्दू कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जरूरत नहीं समझता है क्यों?

इन सभी तरह की अनगिनत हिंसक घटनाओं मुसलमानों द्वारा रोज अनजा दिये जाते हैं भारत का कोई कोना नहीं होगा जहाँ  हिंसात्मक तरीके से हिन्दूओं का दमन   किया गया हो सभी घटनाओं का मूल क्या कारण हिन्दूओं में एकता का अभाव है। मुसलमान तो एकजुट होकर ईसाइयों, हिन्दूओं, यहूदियों, बौद्धों, चीनियों से लड़ रहा है लेकिन ईसाइयों, यहूदियों, बौद्धों, चीनियों की अपने धर्म और संस्कृति रक्षा की प्रबलता तथा आपसी एकता के कारण हर जगहों पर मुसलमान मार और मात खा रहा है। अब आते हैं हिन्दूओं पर इनमें एकता नाम मात्र की भी नहीं है ही उन्हें अपनी धर्म और संस्कृति की रक्षा और विस्तार करने की चिन्ता है वह केवल और केवल अपने परिवार और अपने जातीय समाज के लिए ही कार्य करता है। ज्यादातर हिन्दू कमाने खाने से ही मतलब है वह यह भूल जाता है की भगवान् के बनाए संसार में अगर सज्जन व्यक्ति हैं तो दुष्ट व्यक्ति भी इस संसार में हैं जो हमेशा आपकों हानि पहुँचाने के लिए तत्पर रहता है।

इन्हीं दुष्टों से लड़ना हर व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए नहीं तो एक दिन वे आप पर हावी हो जायेगें और आप का सबकुछ छिन लिया जायेगा। अब हिन्दू कह सकता है कि जब पुलिस प्रशासन और न्यायपालिका हैं तो कानून को क्यों अपने हाथों में लिया जाय तो इसका उत्तर हैं जब कोई हिन्दू महज़बी हिंसा में मरता है तो वह क्षति सम्पूर्ण हिन्दू समाज की होती है सबसे पहला नुकसान उस परिवार के साथ होता है जो उस पर आश्रित था परिवार छिन्न भिन्न हो सकता है दूसरा नुकसान हिन्दूओं में एक सदस्य कम हो जाता है जो आगे चलकर बढ़ा परिवार हो जाता तीसरा नुकसान लम्बे कानून प्रकिया भ्रष्ट और पक्षपाती न्यायिक व्यवस्था में हिन्दूओं को न्याय मिलना मुश्किल है और अपराधी (मुस्लिम) छूट जाता है और छूटने के बाद उसका मनोबल और बढ़ जाता है और वह अधिक उग्र रूप से हिन्दूओं के विरुध्द हिंसा करता है वह जानता है कि कानून कुछ नहीं होता हैं।
 
हिन्दूओं में जातिवाद ने ऐसा विष घोला हैं कि उसमें अपने धर्म और संस्कृति रक्षा सुरक्षा और प्रसार की जगह पर जात रक्षा जात सुरक्षा प्रधान हो गया है और यहीं हिन्दूओं में एकता का प्रसार रोकने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
हिन्दू एक नहीं कई सौव जातीयों में विभाजित हैं और इसमें परस्पर संघर्ष चलता रहता है  कोई आरक्षण के लिए लड़ रहा है और कोई आरक्षण हटाने के लिए लड़ रहा है कोई सैकड़ों सालों पहले हुए अत्याचार के विरुध्द आज उनपर अत्याचार करके बदला लेना चाह रहा है याद रहे हिन्दू सैकड़ों सालों से मुसलमानों और अंग्रेजों का गुलाम रहा है तब तथाकथित स्वर्ण या कहें अगडे़ हिन्दूओं ने किसप्रकर दलितों, पिछड़े पर अत्याचार कर दिया क्योंकि वह स्वंय भी मुसलमानों और अंग्रेजों का गुलाम था और दलितों और पिछडो़ के बराबर ही उनपर अत्याचार हो रहा था।

तथाकथित स्वर्ण या अगडे़ हिन्दूओं द्वारा अपने दलितऔर पिछड़े हिन्दू भाईयों पर अत्याचार की उपज खास कर अंग्रेजों और धूर्त देशी विदेशी इतिहासकारों की देन हैं ये लोग शासन पर पकड़ बनाये रखने के लिए हिन्दूओं में जातिवाद को बढ़ावा देने के लिए झूठे इतिहास का सहारा लिया चापलूस और हिन्दूओं से नफरत करने वाले इतिहासकारों की फौज तैयार की हिन्दूओं के धर्म ग्रन्थों लिखीं बातों को तोड़मरोड़ कर अर्थ का अनर्थ करके इस्लाम और ईसाईयत सोच से भरपूर नया इतिहास पेश किया जो कि वास्तविकता से कोसों दूर था।
जातिवाद मुख्यतः मुगलों की देन है जब प्रथम बार हिन्दू समाज गन्दे, असभ्य, जाहिल, क्रूर और कपटी मुसलमानों से पाला पड़ा हिन्दूओं में उन आक्रामनकारी मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा कर दिया उस काल में भारतवर्ष छोटे छोटे राज्यों में बटा हुआ था और आक्रमणकारी मुसलमानों का सामना करने में असमर्थ था। यह हिन्दूओं का दुर्भाग्य है कि वह अपने स्वार्थवश छोटे छोटे राज्यों में विभाजित था और राज्य पर राजाओं और महराजाओं का जन्म सिद्ध अधिकार था जबकि पहले वैदिक काल में चुनाव के द्वारा राजा का चयन होता था और राजा के भी गलत कार्य करता था तो उसे सबसे ज्यादा सजा का प्रावधान था इसके बाद गलत सलाह देने वाले सलाहकार (राजपुरोहित) और मन्त्रीमंडल के सदस्यों को मिलता था। वैदिक धर्म से विमुख होकर हिन्दू समाज स्वार्थवश महान भारत देश को छोटे छोटे राज्यों में विभक्त कर दिया और वह राज्य आपसी कटुता और स्वार्थवश मुगलों और अंग्रेजों से जा मिला या उनके हाथों से पराजित होकर उनका गुलाम हो गया। मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी से लेकर आज तक हिन्दू अपने पराजय के कारणों से शिक्षा ग्रहण नहीं करा हैं आज भी वहीं कारण विद्धमान है जिससे हिन्दू समाज सैकड़ों सालों से लगातार गुलाम रहा है। अगर हिन्दू जातिवाद (जातिवादी सोच हिन्दूओं को कमजोर और विभाजित करता है) , स्वार्थी (केवल अपने तथा अपने परिवार के बारे में सोचना) , कायरता (लड़ने की जगह लड़ाई से दुर भागना) , दब्बूपन (अत्याचार सहने और देखने की आदत) नहीं छोडता तो अबकी बार हिन्दू गुलाम नहीं बनेगा बल्कि अबकी बार हिन्दूओं का सम्मूल नाश और हिन्दू धर्म का पूरी तरह से सफाया हो जायेगा।

हिन्दूओं स्वार्थ छोड़ कर एक हो एकसाथ मिलकर संघर्ष करो अन्धविश्वास से दूर रहो।