Saturday, December 15, 2012

मध्यदेशीय-कान्यकुब्ज आदि का इतिहास

महोदय,
मै मध्यदेशीय वैश्य (हलवाई) हु ,अपने समाज के  इतिहास   के बारे मे जनने की इछा हुइ सो मै अपने समाज के वेबसाइट पर जिसका पता हैः-http://vaishyhalwai.com/parichay.aspx पर गया जो अखिल भारतीय वैश्य हलवाई महासभा का है।उससे मुझे जो जनकारी मिली उसके अनुसार वैश्य (हलवाई) मे मध्यदेशीय, कान्यकुब्ज, मोदनवाल,यज्ञसेनी   आदी का मिला-जुला समाज है।
यदि मोदक भगवान गणेश जी के पौराणिक काल में था तो उसको बनाने वाले भी हमारे पूर्वज रहे होगें। शायद इसीलिए मोदनवाल वैश्य के रूप में भी हम लोगों के नाम प्रचलित हुये। इसी प्रकार
यज्ञसेनी वैश्यॉ की महाराजा दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ की रक्षा हेतु उत्पत्ति हुई कई पत्रिकाओं में इस विषय पर लेख प्राचीन काल से छपते रहें हैं। ठीक इसी प्रकार मध्यदेशीय वैश्य सन्त गणीनाथ को अपना कुल अग्रज मानते हैं। हमारे कान्यकुब्ज हलवाई वैश्य अपने को कान्यकुब्ज देश के राजा का वंशज मानते हैं जो पहले महोदय पुरी था और मोदन सेन जी से इसी वर्ग का विस्तार हुआ इसी प्रकार से हम देखें तो हमारे सामाजिक विद्वानों, लेखकों ने काफी अध्ययन किया जिसका विवरण वेबसाइट के इतिहास कालम में देखा जा सकता है।
मेरा मानना है की हम सभी (मध्यदेशीय-कान्यकुब्ज आदि) मध्यदेश वासी है यह मध्यदेश भारत(आर्यावर्त) के मध्य मे है,यह हिदू पौराणिक कथाओ मे पवित्र माना जाता था ।
मनुस्मृति  के अनुसार मध्यदेश (बीच के देश) की सीमा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पश्चिम में विनशन (राजस्थान की मरुभूमि में सरस्वती के लुप्त होने का स्थान) तथा पूर्व में गंगा- यमुना के संगम स्थल प्रयाग तक विस्तृत है। वास्तव में यह मध्यदेश आर्यावर्त का मध्य भाग है। 'मध्यदेश' शब्द वैदिक संहिताओं में नहीं मिलता है, परन्तु ऐतरेय ब्राह्मण में इसकी झलक मिलती है।इसमें कुरु, पंचाल, वत्स तथा उशीनगर देश के लोग बसते थे। आगे चलकर अन्तिम दो वंशों का लोप हो गया और मध्यदेश मुख्यत: कुरु-पचांलों का देश बन गया।बौद्ध साहित्य के अनुसार मध्यदेश पश्चिम में स्थूण (थानेश्वर) से लेकर पूर्व में जंगल (राजमहल की पहाड़ियों) तक विस्तृत था।
मध्यदेश इस नाम का प्रयोग उपनिषत्काल में भारत के एक भौगोलिक प्रदेश के लिए किया गया था। इसका क्षेत्र संपूर्ण आर्यावर्त के क्षेत्र का एक भाग है।मध्यदेश प्राचीन भारत का यह विस्तृत मध्य भाग जिसके उत्तर में हिमालय, पूर्व में बंगाल, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में पंजाब और सिंध, तथा पश्चिम-दक्षिण में गुजरात था।
कान्यकुब्ज ब्राह्मण का इतिहास देखेने से यह पता लगता है की महराजा कुशनाभ ने अपने  साम्राज्य का गठन किया और उसे मध्यदेश  नाम दिया। मध्यदेश भारत(आर्यावर्त) का पवित्र स्थल है,पुराणो में पञ्च गौडा ब्राह्मणों का उल्लेख मिलता है। ये पञ्च गौडा ब्राह्मण है --सारस्वत - कान्यकुब्ज -सनाढय -गौड़ - उत्कल - मैथली सभी मध्यदेशीय निवासी है।
अब वैश्य' शब्द  को लेते है वैश्य' शब्द वैदिक विश् से निकला है वैदिक काल में प्रजा मात्र को विश् कहते थे पर बाद में जब वर्णव्यवस्था हुई, तब वाणिज्य व्यसाय और गोपालन आदि करनेवाले लोग वैश्य कहलाने लगे इनका धर्म यजन, अध्ययन और पशुपालन तथा वृति कृषि और वाणिज्य है आजकल अधिकांश वैश्य प्रायः वाणिज्यव्यवसाय करके ही जीविकानिर्वाह करते हैं ।अर्थ की दृष्टि से इस "वैश्य" शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है जिसका मूल अर्थ "बसना" होता है।
इस तरह हम देखते है की हम सभी किसी न किसी तरह एक दुसरे से जुडे हुए है,चहे कोई भी वर्ण (वतॅमान मे जाति हो गया है,वैदिक काल में वर्ण-व्यवस्था जन्म-आधारित होकर कर्म आधारित थी­) हो।   इस तरह हम एक दुसरे को जनने पर ही हम अपना सही इतिहास जान सकते है
                        आगे भी जारी......
धर्म रक्षा ही राष्ट्र  रक्षा है
आप सभी को धन्यवाद्
मध्यदेशीय वैश्य  

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