GOD (भगवान,ईश्वर)

भगवान को जानने पहले हमे यह समक्षना होगा की यह जगत-प्रकृति (सृष्टि) आखिर में कार्य कैसे  करती है, हम रोज दिन और रात्रि का चक्र देखते है वैज्ञानिकों का कहना है की पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते हुए अपनी कक्षा में घुमती है और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के जिस ओर पड़ता है उधर दिन और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के जिस ओर नहीं पड़ता है उस ओर रात्रि रहती है इसी से दिन और रात्रि का चक्र चलता है। अब तो मनुष्य अंतरिक्ष यात्रा करने लगा है उन्हें तो वैज्ञानिकों के कथन का साक्षात् दर्शन हो गये बाकी के लोग टीवी आदी के मध्य से जान-देख चुके है।

कहने का अर्थ यह है की यह जगत नियमों से बन्धा है नियम ने ही जगत को बन्धे रखा है, क्या आप ने गौर किया है की आग जलाने से गरमी ही क्यों लगती है ढंड क्यों नहीं लगती, प्यास लगने पर पानी क्यों पीते है हवा लेकर अपनी प्यास को क्यों नहीं बुक्षाते, अंधेरा होते ही बिन बत्ती के हमें दिखाई क्यों नहीं देता आदि।

इन सभी प्रश्न का एक ही उत्तर है प्रभु के बनाए अनादी नियमों से जगत बन्धा है इसलिए आग जलाने से गरमी ही लगती है, प्यास पानी से ही बुक्षाता है और अंधेरा होते ही बिन बत्ती के हमें दिखाई नहीं देता, अगर नियम न हो तो कोई भी वैज्ञानिक अविष्कार नहीं हो पयेगा और न ही जगत होगा क्योंकी सब कुछ शून्य में चला जाऐगा, कुछ भी न होगा न अंतरिक्ष होगा न सूर्य होगे न पृथवी होगी और न ही जीव-जनतु  होगे इसलिए प्रभु ने जगत को नियमों से बन्धा है।

इन नियमों का बनाने वाला और कोई नहीं सिर्फ भगवान है, आदी से अंत तक नियम एक रहता है।

सभी वैज्ञानिक अविष्कार प्रभु के बनाये नियमों के अधार पर होते है जो इन नियमों को पढ़ता है उस पर देवी सरस्वती तथा देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है, कहने का तात्पर्य यह है की प्रभु  के बनाये नियमों को पढ़ने पर ज्ञान और धन दोनो की प्राप्त होती है।

प्रभु के बनाये नियमों को पढ़ने से ज्ञान की प्राप्ती होती है उससे वैज्ञानिक अविष्कार होते है और लोगों का जीवन जीना असान हो जात है इससे श्रिः तथा लक्ष्मी की प्राप्ती होती है।

अब मोटरकार को लीजिए उसे बनाने के पहले बहुत सारा पार्टस की जरूरत होगा बडा छोटा सभी तथा विभिन्न व्यक्तियों का हाथ मोटर कार के पार्टस को बनाने में लगा होगा चाहे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लगता है। उसी तरह इस जगत को बनाने के लिए अलग-अलग पदार्थ की जरूरत होगी तथा जगत  को बनने में सहयोग करने वाले भी होगे और वह है देवता अर्थात दिव्य गुण युक्त पदार्थ।

अब प्रश्न उठता है देवता किसका सहयोग जगत को बनाने में करते है इस प्रश्न का एक ही उतर है भगवान का जिसने दिव्य गुण धरण किया हुए इन देवताओं के सहयोग से यह जगत को रचा ये देवता है अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, सूर्य, चन्द्र, तारे, ग्रह, उपग्रह, विभिन्न तरह के रसायन आदी।

अब प्रश्न उठता है की अगर भगवान ने अगर जगत को रचा तो भगवान दिखाई क्यों नहीं देता इसका उत्तर है साकार(दिखाई देने वाला) भगवान इस अनंत(अन्तहीन) जगत को कैसे रच  सकता है सर्वव्यापी निराकार भगवान ही सभी जगह पहुच सकते है आकार वाले की सीमा होती है वह एक ही समय में अनेक कार्य नहीं कर सकता है और न ही अनेक जगह पर हो सकता है जैसे एक मनुष्य जो की साकार है वह एक ही समय में खेत में बीज बोने, मोटरयान बनाने तथा अंतरिक्ष की यात्रा नहीं कर सकता है क्योंकी उसकी कुछ सीमा है पर निराकार भगवान की कोई सीमा नहीं है वह सर्वव्यापी है अनंत अंतरिक्ष में, तारे, सूर्य, पृथ्वी, जीव-जन्तु, अणु-परमाणु(जगत का सबसे छोटा पदार्थ) आदि में है।

सर्वव्यापी निराकार भगवान को वेद में ओ३म्-ॐ कहा गया है, ओ३म्-ॐ ही ब्रह्मा, ओ३म्-ॐ ही  
विष्णु, ओ३म्-ॐ ही महेश-शिव है।
ओ३म्-ॐ वैदिक धर्म में भगवान की उच्चतम नाम है।
भगवान तीन लौकिक कार्य है:- 1) निर्माण, 2) रखरखाव, 3) विनाश।
वे महान त्रिमूर्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं वे अक्सर संबोधित किया जाते है.....
ब्रह्मा -(ब्रह्मांड के निर्माता)
विष्णु -( ब्रह्मांड के संचालन,पालक और रक्षक)
महेश-शिव-(ब्रह्मांड के विनाशक और रूपांतरण या परिवर्तक)

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