Saturday, December 23, 2017

बालीवुड‬ और टीवी सीरियल के नजरिए से ‪हिन्दू‬ को कैसे देखा जाता है एक झलक

**बालीवुड‬ और टीवी सीरियल के नजरिए से ‪हिन्दू‬ को कैसे देखा जाता है एक
झलक:----

*ब्राह्मण* - ढोंगी पंडित, लुटेरा,
*‪राजपूत* - अक्खड़, मुच्छड़, क्रूर, बलात्कारी
*वैश्य या साहूकार* - लोभी, कंजूस,
*गरीब हिन्दू दलित* - कुछ पैसो या शराब की लालच में बेटी को बेच देने वाला
चाचा या झूठी गवाही देने वाला
*सिक्ख*- जोकर आदि बनाकर मजाक उड़ाना
*जाट* खाप पंचायत का अड़ियल बेटी और बेटे के प्यार का विरोध करने वाला और
महिलाओं पर अत्याचार करने वाला

जबकि दूसरी तरफ

वही दूसरी और
*मुस्लिम* - अल्लाह का नेक बन्दा, नमाजी, साहसी, वचनबद्ध, हीरो-हीरोइन की मदद
करने वाला टिपिकल रहीम चाचा या पठान।

*ईसाई* - जीसस जैसा प्रेम, अपनत्व, हर बात पर क्रॉस बना कर प्रार्थना करते
रहना।

ये बॉलीवुड इंडस्ट्री, सिर्फ हमारे धर्मं, समाज और संस्कृति पर घात करने का
सुनियोजित षड्यंत्र है और वह भी हमारे ही धन से ।
*हम हिन्दू और सिक्ख अव्वल दर्जे के CARTOON बन चुके हैं।*

क्योंकि ये कभी वीर हिन्दू पुत्रों महाराणा प्रताप ,गुरु गोविन्द सिंह गुरु
तेग बहादुर
चन्द्रगुप्त मौर्य ,अशोक,
विक्रमादित्य,  वीर शिवाजी संभाजी राणा साँगा, पृथ्वीराज की कहानी नहीं बता
सकते।

कभी गहराई से विचार कीजियेगा…!!

अगर यही बॉलीवुड देश की संस्कृति सभ्यता दिखाए ..
तो सत्य मानिये हमारी युवा पीढ़ी  अपने रास्ते से कभी नहीं भटकेगी...
समझिये ..जानिए और आगे बढिए...

ये संदेश उन हिन्दू  छोकरों के लिए है
जो फिल्म देखने के बाद
गले में क्रास मुल्ले जैसी छोटी सी दाड़ी रख कर
खुद को मॉडर्न समझते हैं
हिन्दू नौजवानों के रगो में धीमा जहर  भरा जा रहा है
फिल्म जेहाद
*************
सलीम - जावेद की जोड़ी की लिखी हुई फिल्मों को देखे, तो उसमें आपको अक्सर बहुत
ही चालाकी से हिन्दू धर्मं का मजाक तथा मुस्लिम / इसाई / साईं बाबा को महान
दिखाया जाता मिलेगा. इनकी लगभग हर फिल्म में एक महान मुस्लिम चरित्र अवश्य
होता है और हिन्दू मंदिर का मजाक तथा संत के रूप में पाखंडी ठग देखने को मिलते
है.

फिल्म "शोले" में धर्मेन्द्र भगवान् शिव की आड़ लेकर "हेमामालिनी" को प्रेमजाल
में फंसाना चाहता है जो यह साबित करता है कि - मंदिर में लोग लडकियां छेड़ने
जाते है. इसी फिल्म में ए. के. हंगल इतना पक्का नमाजी है कि - बेटे की लाश को
छोड़कर, यह कहकर नमाज पढने चल देता है.कि- उसे और बेटे क्यों नहीं दिए कुर्बान
होने के लिए.

"दीवार" का अमिताभ बच्चन नास्तिक है और वो भगवान् का प्रसाद तक नहीं खाना
चाहता है, लेकिन 786 लिखे हुए बिल्ले को हमेशा अपनी जेब में रखता है और वो
बिल्ला भी बार बार अमिताभ बच्चन की जान बचाता है. "जंजीर" में भी अमिताभ
नास्तिक है और जया भगवान से नाराज होकर गाना गाती है लेकिन शेरखान एक सच्चा
इंसान है.

फिल्म 'शान" में अमिताभ बच्चन और शशिकपूर साधू के वेश में जनता को ठगते है
लेकिन इसी फिल्म में "अब्दुल" जैसा सच्चा इंसान है जो सच्चाई के लिए जान दे
देता है. फिल्म "क्रान्ति" में माता का भजन करने वाला राजा (प्रदीप कुमार)
गद्दार है और करीमखान (शत्रुघ्न सिन्हा) एक महान देशभक्त, जो देश के लिए अपनी
जान दे देता है.

अमर-अकबर-अन्थोनी में तीनों बच्चों का बाप किशनलाल एक खूनी स्मग्लर है लेकिन
उनके बच्चों अकबर और अन्थोनी को पालने वाले मुस्लिम और ईसाई महान इंसान है.
साईं बाबा का महिमामंडन भी इसी फिल्म के बाद शुरू हुआ था. फिल्म "हाथ की सफाई"
में चोरी - ठगी को महिमामंडित करने वाली प्रार्थना भी आपको याद ही होगी.

कुल मिलाकर आपको इनकी फिल्म में हिन्दू नास्तिक मिलेगा या धर्मं का उपहास करता
हुआ कोई कारनामा दिखेगा और इसके साथ साथ आपको शेरखान पठान, DSP डिसूजा,
अब्दुल, पादरी, माइकल, डेबिड, आदि जैसे आदर्श चरित्र देखने को मिलेंगे. हो
सकता है आपने पहले कभी इस पर ध्यान न दिया हो लेकिन अबकी बार ज़रा ध्यान से
देखना.

केवल सलीम / जावेद की ही नहीं बल्कि कादर खान, कैफ़ी आजमी, महेश भट्ट, आदि की
फिल्मों का भी यही हाल है.  फिल्म इंडस्ट्री पर दाउद जैसों का नियंत्रण रहा
है. इसमें अक्सर अपराधियों का महिमामंडन किया जाता है और पंडित को धूर्तं,
ठाकुर को जालिम, बनिए को सूदखोर, सरदार को मूर्ख कामेडियन, आदि ही दिखाया जाता
है.

"फरहान अख्तर" की फिल्म "भाग मिल्खा भाग"  में "हवन करेंगे" का आखिर क्या मतलब
था ? pk में भगवान् का रोंग नंबर बताने वाले आमिर खान क्या कभी अल्ला के रोंग
नंबर 786 पर भी  कोई फिल्म बनायेंगे ? मेरा मानना है कि - यह सब महज इत्तेफाक
नहीं है बल्कि सोची समझी साजिश है एक चाल है ।
बहुत हो चुका मजाक अब और नहीं अब आर या पार।

यदि सहमत हों तो सर्वत्र फैलायै⛳🕉⛳🕉⛳🙏⛳🙏⛳🙏⛳🙏

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